रंग
(a poem by ravi kumar, rawatabhata)
रंग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं
इसलिए भी कि
हम उनमें ज़्यादा फ़र्क कर पाते हैं
कहते हैं पशुओं को
रंग महसूस नहीं हो पाते
गोया रंगों से सरोबार होना
शायद ज़्यादा आदमी होना है
यह समझ
गहरे से पैबस्त है दिमाग़ों में
तभी तो यह हो पा रहा है
कि
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है
०००००
रवि कुमार
रवि! बहुत बहुत गहरी कविता है! इस में एक नई दृष्टि दिखाई पड़ती है। बहुत गंभीर व्यंग ने होली के इस माहौल की संपूर्ण व्याख्या कर दी है।
अच्छी कविता.
बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
हिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।
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sunder… ati sunder..
गोया रंगों से सरोबार होना
शायद ज़्यादा आदमी होना है
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार…. these lines are just awesome..
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है
शायद इसीलिये हमें रंगो का आवरण चाहिये.
गहरी बात शानदार रचना
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
बहुत ही सारगर्भित और प्रासंगिक।
होली मुबारक्।
बहुत ही सशक्त मनोभाव व्यक्त किया है आपने इस के माध्यम से । उम्दा रचना ।
होली की शुभकामनायें ।
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है
gaharee baat
यह समझ
गहरे से पैबस्त है दिमाग़ों में
तभी तो यह हो पा रहा है
कि
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है
Sundar rachana!
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार
बहुत खूब!
u gave us new vision
बहुत सुन्दर कविता है. गहरा अर्थ समेटे. क्या बात कही है,
“चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है”
और आपको होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ !
.
.
.
गोया रंगों से सरोबार होना
शायद ज़्यादा आदमी होना है
यह समझ
गहरे से पैबस्त है दिमाग़ों में
तभी तो यह हो पा रहा है
कि
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार
क्या लिखा है दोस्त,
सीधी सर पर ही ठोंक दी है कील…
आभार!
vah!
भाई कमाल है ….. बहुत ही उम्दा रचना …. बेहतरीन !!
बहुत मौलिक कविता है… अंतर्दृष्टि से उपजी ऐसी कविता लैंडमार्क हो जाती हैं… एक सार्थक वक्तव्य सा लग रहा है… शुक्रिया…
यह है एक बहुत ही असरदार रंग कविता का . अभिवादन बन्दापरवर !
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है ।
बहुत ही सही कहा । सुंदर कविता ।
गहरी और सार्थक…..
ये बहुत गंभीर बात कही आपने
” रंग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं
इसलिए भी कि
हम उनमें ज़्यादा फ़र्क कर पाते हैं
कहते हैं पशुओं को
रंग महसूस नहीं हो पाते
गोया रंगों से सरोबार होना
शायद ज़्यादा आदमी होना है ”
शीर्षक से लगा कि रंगों के प्रति किसी मनोवैज्ञानिक दर्शन को प्रस्तुत करना चाहते हैं
लेकिन कविता में मुझे बयान मिल गया
यह समझ
गहरे से पैबस्त है दिमाग़ों में
तभी तो यह हो पा रहा है
कि
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार
रचना की अंतिम पंक्तियाँ बहुत गहरी नहीं रह सकी..मगर अन्य दो पंक्तियों से अच्छे से सम्बद्ध हैं…वैसे ठीक भी है…मेरी शायद आपकी एक कविता के प्रति एक शिकायत रही है कि, मानसिक स्थिति को समझे बिना कविता को अच्छा बुरा कहना सिर्फ कविता के बारे में कहना है…वास्तव में कवि को भी सामने रखने का जिम्मा भी कविता का ही हैं..इस कविता में जो बिम्ब हैं…वो किसी ख़ास का अधिकार नहीं है, ये तो वैचारिक योजना है, जो सबके मन में चलती है, चल रही है…इसीलिए रचना पसंद आई..क्यूंकि मैं ने इसके साथ खुद को जोड़कर..सफल पाया…
वो कहा है न धूमिल ने…
भट्टियाँ सभी जगह हैं
सभी जगह लोग ठोंकते फिरते हैं कील
कि अनुभव ठहर सकें
अक्सर लोग बुनते हैं आपस में गहरा तनाव
कि उनके अनुभव ठहर सकें…
Nishant kaushik
सच है साथी हमें इस बेनूर ज़िंदगी में रंग भरने हैं।
कहते हैं पशुओं को
रंग महसूस नहीं हो पाते
गोया रंगों से सरोबार होना
शायद ज़्यादा आदमी होना है
बहुत बेहतर दृष्टिकोण
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है
तभी तो रंगीलो राजस्थान की दीवानी मीरां के मुंह से रेदास के ढिग सहज ही निकल पड़ा था ‘‘री हौं तो रंग गी ’’
Anupam, Holi ki shubhkamnayen.
achhi kavita he
han bahut khuch chup jata he
पर हैरान हूँ मैं,
Sashakt rachana!
Ramnavmiki anek shubhkamnayen!
Ramnavmiki anek shubhkamnayen!
अपनी ही एक हाइकु कविता याद आ गई।