रवि कुमार
रावतभाटा, कोटा ( राजस्थान )
ravikumarswarnkar@gmail.com
ravikumarswarnkar@yahoo.co.in

कविता, समीक्षा एवं चित्रांकन

कुछ कविताएं ‘परिवेश’, ‘वातायन’, ‘अलाव’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘वागर्थ’
‘एक और अंतरीप’, ‘क्रमशः’, ‘बनास जन’,  ‘समता संदेश’, ‘प्रशांत ज्योति’
‘अपनी माटी’, ‘शुक्रवार वार्षिकी’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
कुछ रेखाचित्रों का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन
कुछ कविता-पोस्टर एवं कला-चित्र प्रदर्शनियां आयोजित
साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी


रुचियाँ :साहित्य, कला, आलोचना, व्यक्ति, विचार, समाज
एक बेहतर आदमी बनने की प्रक्रिया में एक साधारण आदमी…

13 responses »

  1. AAPKE ANUSANDHAN BAHUT HI VICHARNIYA HAI..KHAS KAR ..JO AAPNE MUNSHI PREM CHAND KO JO JAGAH APNE BLOG PAR DI HAI ATI UTTAM .
    ITIHAS GAVAH HAI KI BAIGYANIKO KE ANUSANDHANO SE MANAV JAATI KA BHALA HUA HAI..MERI BHI YAHI AASHA HAI KI AAP APNE ANUSANDHANO KA NICHOD HUM JAISE BYAKTIYON TAK PAHUCHATE RAHE.JISSE LOGO KE BYEKTIK VIKAS MAIN SAHAYTA MILE.

  2. रवि जी! नेट पर शील जी के बारे में सामग्री ढूंढ़ते हुए मैं अचानक आपके ब्लाग पर पहुँचा। आपके कविता पोस्टर देख कर ख़ुशी और आश्चर्य से भर गया। बेहद अच्छे पोस्टर हैं। चलिए इनको छपवाकर बँटवाते हैं। कविता कोश आपने देखा होगा। न देखा हो तो अब देख लें। उसका पता है :www.kavitakosh.org
    हम आपकी भी कविताएँ इस कोश में शामिल करना चाहते हैं। और कोश की तरफ़ से कविताओं के पोस्टर
    जारी करने की बात सोच सकते हैं। इसके बारे में कविता कोश टीम से बात करनी होगी। आपकी क्या राय है?
    शुभकामनाओं के साथ।
    सादर
    अनिल जनविजय

  3. जान कर सच में ख़ुशी हुई कि आप हिंदी भाषा के उद्धार के लिए तत्पर हैं | आप को मेरी ढेरों शुभकामनाएं | मैं ख़ुद भी थोड़ी बहुत कविताएँ लिख लेता हूँ | हाल ही में अपनी किताब भी प्रकाशित की | आप मेरी कविताएँ यहाँ पर पढ़ सकते हैं- http://souravroy.com/poems/

  4. बचपन में अपनी दादी से जाना था ,
    लगता है ग्रहण, सूरज-चाँद में,

    और लगता है ग्रहण असमान में,

    यू तो कई ग्रहण लगते है,
    जिंदगी के इस इम्तहान में,

    पर अब लग गया है ग्रहण ,
    मानवता के दिलों जान में,

    मत रोंदों इस कदर मानवता को, ए नामर्दों,
    नहीं तो कुछ कुछ नहीं बचेगा इस जहान में।।।।।।।।।

    राधे-राधे।
    सुरेन्द्र शुक्ला

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