भूख एक बेबाक बयान है

सामान्य

भूख एक बेबाक बयान है
(a poem by ravi kumar, rawatbhata)

bhookh-bayaan

भूख के बारे में शब्दों की जुगाली
साफ़बयानी नहीं हो सकती
भूख पर नहीं लिखी जा सकती
कोई शिष्ट कविता

भूख जो कि कविता नहीं कर सकती
उल्टी पडी डेगचियों
या ठण्डे़ चूल्हों की राख में कहीं
पैदा होती है शायद
फिर खाली डिब्बों को टटोलती हुई
दबे पांव/ पेट में उतर जाती है

भूख के बारे में कुछ खा़स नहीं कहा जा सकता
वह न्यूयार्क की
गगनचुंबी ईमारतों से भी ऊंची हो सकती है
विश्व बैंक के कर्ज़दारों की
फहरिस्त से भी लंबी
और पीठ से चिपके पेट से भी
गहरी हो सकती है

वह अमरीकी बाज़ की मानिंद
निरंकुश और क्रूर भी हो सकती है
और सोमालिया की मानिंद
निरीह और बेबस भी

निश्चित ही
भूख के बारे में कुछ ठोस नहीं कहा जा सकता
पर यह आसानी से जाना जा सकता है
कि पेट की भूख
रोटी की महक से ज़ियादा विस्तार नहीं रखती
और यह भी कि
दुनिया का अस्सी फीसदी
फिर भी इससे बेज़ार है

भूख एक बेबाक बयान है
अंधेरे और गंदे हिस्सों की धंसी आंखों का
मानवाधिकारों का
दम भरने वालों के खिलाफ़

दुनिया के बीस फीसदी को
यह आतिशी बयान
कभी भी कटघरे में खड़ा कर सकता है

०००००
रवि कुमार

एक प्रतिक्रिया »

  1. भूख एक बेबाक बयान है
    अंधेरे और गंदे हिस्सों की धंसी आंखों का
    मानवाधिकारों का
    दम भरने वालों के खिलाफ़

    दुनिया के बीस फीसदी को
    यह आतिशी बयान
    कभी भी कटघरे में खड़ा कर सकता है

    bahut khoob

  2. भूख की त्रासदी, उस का उद्गम, उस के होने की वजह, उस के उन्मूलन के उपाय का संकेत। क्या कुछ नहीं है इस कविता में। यह कविता अनेक मोटे ग्रन्थों से भी अधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

  3. वाह भाई क्या खूब लिखते हो वाकई आपने
    सच ही कहा है भूख भूख ही होती है जब वो अपनी सीमायें लांघती है तो

    “वह न्यूयार्क की
    गगनचुंबी ईमारतों से भी ऊंची हो सकती है
    विश्व बैंक के कर्ज़दारों की
    फहरिस्त से भी लंबी
    और पीठ से चिपके पेट से भी
    गहरी हो सकती है”
    वह अमरीकी बाज़ की मानिंद
    निरंकुश और क्रूर भी हो सकती है”
    और जब
    और सोमालिया की मानिंद
    निरीह और बेबस भी”

    आपको इस रचना के लिखने पर बधाई |

  4. .भूख सिर्फ पेट में नहीं लगती….भूख अब अपनी शक्ल बदल रही है……सबकी भूख अलग अलग है……

    .भूख सिर्फ पेट में नहीं लगती….भूख अब अपनी शक्ल बदल रही है……सबकी भूख अलग अलग है……

    • पेट की भूख ही
      सबसे पहली और आखिरी भूख है

      बाकी सब शगल हैं,अघाए हुए पेटों का
      भरे पेट के भौभाते भजनों का

      जब पेट भरा हो
      और आगे भी भरते रहने की निश्चिंतता हो

      जब भूख शब्द के मायने भी
      हमारी ज़िंदगी में अहसास खोने लगते हैं

      तब ही ना हमें लगता है
      भूख अब अपनी शक्ल बदल रही है
      अपने अस्तित्व को
      कहीं और टटोल रही है…..
      ०००००

      आपका यही मतलब है, शायद

  5. ..आपको पढना शायद कुछ रास्तो से गुजरने जैसा है…..
    .भूख सिर्फ पेट में नहीं लगती….भूख अब अपनी शक्ल बदल रही है……

  6. guru kya likha hai yaar padte waqt kuch drashy aakho k samne aa gaye
    निश्चित ही
    भूख के बारे में कुछ ठोस नहीं कहा जा सकता
    पर यह आसानी से जाना जा सकता है
    कि पेट की भूख
    रोटी की महक से ज़ियादा विस्तार नहीं रखती
    और यह भी कि
    दुनिया का अस्सी फीसदी
    फिर भी इससे बेज़ार है
    bahut hi sundar kavita

  7. Priya Bhai ,
    Itni sashakta abhivyakti , itna sashakta chitrankan …shabdon ko nithalla kar dene wali pratibha…. aap keval prashansneey hi nahi anukarneey hain ..but this is true , no talent can be followed exactly. Immitation is just a satisfaction of doing something well. original is original…let’s not allow stops…
    Dr.Ramarya,

  8. दुनिया के बीस फीसदी को
    यह आतिशी बयान
    कभी भी कटघरे में खड़ा कर सकता है

    wakai main yah panktiya sochane ko vivash karati hai.

  9. भूख के बारे में इतने विस्तृत फलक पर उकेरे गए इस ज्वलंत और जीवन्त चित्र के लिए बधाई. लेकिन यह तो मानते हैं न कि भरे पेट की यह शगल भी एक भूख है जो भूख के खिलाफ और उसे ऐसी जगह पहुँचा देने के लिए जरूरी है, जिसके बाद मज़बूरी में पेट की भूख जैसा आदिम अहसास हमेशा हमेशा के लिए दफ्न हो जाय.

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