तूफ़ान कभी भी मात नहीं खाते – पाश
( a kavita poster by ravi kumar, rawatbhata)
शब्दों के कुछ समूह हमारी चेतना पर अचानक एक हथौडे़ की तरह पड़ते हैं, और हमें बुरी तरह झिंझोड़ डालते हैं. दरअसल हथौडे़ की तरह पड़ने और बुरी तरह झिंझोड़ डालने वाली उपमाओं के पीछे होता यह है कि इन शब्दों ने हमारे सोचने के तरीके पर कुठाराघात किया है, हमें हमारी सीमाएं बताई हैं, और हमारी छाती पर चढ़ कर कहा है, देखो ऐसे भी सोचा जा सकता है, ऐसे भी सोचा जाना चाहिए.
जाहिर है कविता इस तरह हमारी चेतना के स्तर के परिष्कार का वाइस बनती है.
इस बार का कविता-पोस्टर है, अवतार सिंह ‘पाश’ की ऐसी ही कविता पंक्तियों का.
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रवि कुमार
अलग प्रभाव छोड़ती हैं इस तरह कवितायेँ. और उस पर अगर कविता पाश की हो….
यहाँ आकर कविता को एक नए रूप और तेवर में देखा….लगा कविता में भी दर्शनीयता का सुख तलाश किया जा सकता है.
पाश की बेहतरीन कविता के साथ आपने अनूठे पोस्टर का मेल बहुत अर्थपूर्ण है.
लेकिन हमें तो हवा की दिशा बदलने का इंतज़ार करते-करते अरसा बीत गया!
पाश जी रचना काफी दिनों के बाद पढने को मिली। दिल खुश हो गया। और वो भी एक नए अदांज में। शुक्रिया रवि जी।
लाजवाब कविता और उतना ही लाजवाब पोस्टर। इस का कोई सानी नहीं।
लाजवाब्।
पाश…ज़माने की तमाम मुश्किलों से जूझता इंसान। सच पाश की कविता तूफ़ान ही है। वो कभी मात नहीं खाएगी।
aap ki kavita achi hai. lekin yah bhi satya hai ki tufan har kisi ko barbad nahi kar sakta hai.
bahut sahi.
पाश के अल्फाज़ जिंदा हैं और घूरते रहते हैं आपको…मन में चोर हो, तो नजरें झुकाने को मजबूर कर देते हैं…या फिर आपको अपनी ओर खड़ा कर लेते हैं। ऐसे ज़िंदा अल्फाज़ को शक्ल बख्श दी है आपने रवि जी। यूं लगता है घूरते हुए वे शब्द बोलने लगे हैं।
bahut khoob bhai ravi ji
pash ji kavita aapke dwara rekhachitra se hi saarthak ho rahi hai
varna shabd hi hote to sahi disha pata nahi chalti arthart bhavarth samajhne men rekhachitra ka yogdaan mahtavpurn hai
Sach hai…toofaan maat nahee khate..wo diyon ko bujha ke hee dam lete hain!
पिंगबैक: Ravi Kumar’s poster of Paash poem in Hindi « Paash
प्रेमिकाओं को पत्र लिखने वालों
अगर तुम्हारे कलम की
नोंक बाँझ है
तो कागजों का गर्भपात न करो
सितारों की और देखकर क्रांति लाने वालों
जब क्रांति आएगी
तो तुमको भी तारे दिखा देगी…
Paash…….
Ravi Bhai pash ki kavita sunkar ham log bade hue hain….inki kavita nahi hai….vidroh ka halafnama hai…har kavita mein alag udwelit karne wala rang hai….
Nishant kaushik
Dear ravi
i made a film on pash 15 years back would u like to watch.I will send the cd.
Regards
Rajeev
तूफान बनेंगे कैसे?