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स्त्री बीमार भी नहीं होना चाहती – कविता – रवि कुमार

सामान्य

स्त्री बीमार भी नहीं होना चाहती
( a poem by ravi kumar )

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स्त्री बाहर नहीं है
वह सिर्फ़ बीमार है

जब स्त्री बीमार होती है
पूरा घर अस्तव्यस्त सा हो जाता है

पुरूष स्त्री बनने के प्रयासों में
चिड़चिड़ा रहे होते हैं

बच्चे यह नहीं समझ पा रहे होते हैं
कि वे खुश हैं या दुखी

स्त्री बीमार भी नहीं होना चाहती

वह नहीं चाहती
कि घर को उसके बिना दुरस्त रहने की
आदत हो जाए

पुरुष भी यही चाहते हैं
बच्चे भी इसी में भलाई सी महसूसते हैं

आम सहमति से
आम घरों की स्त्रियां
घर में ही तब्दील हो जाना चाहती है

०००००
रवि कुमार