Tag Archives: चेंपा

जिन्हें वक़्त पढ़ने में लगा है – कविताएं – रवि कुमार

सामान्य

चेंपों पर दो कविताएं

चेंपा

वे जब आएंगे
तो ऐसे ही आएंगे

वे जब छाएंगे
तो ऐसे ही छाएंगे

वे जब-जब आए हैं
ऐसे ही आए हैं

वे जब-जब छाए हैं
ऐसे ही छाए हैं

वे गांवों से निकलते हैं
वे खेत-खलिहानों से निकलते हैं
वे लहलहाती फसलों से निकलते हैं

वे ज़मीं की पैदाईश हैं
वे आसमां की ख़्वाहिश हैं

वे गली-गली छा जाएंगे

०००००
चेंपा – सरसों की कटाई के बाद आसपास फैल जाने वाले छोटे कीट

चेंपों की तहरीर
जब लग रहा था
कि महलों में बसंत शबाब पर है

सरसों के खेतों-खलिहानों से बाहर निकल कर
तभी चौतरफ़ छा गये चेंपे

लाख इंतज़ाम कर लिए
राजा जी की आंखों को
आख़िर लाल कर गये चेंपे

वे तहरीर कर गये हैं
हर शै पर नई इबारतें

जिन्हें वक़्त पढ़ने में लगा है

०००००
चेंपा – सरसों की कटाई के बाद आसपास फैल जाने वाले छोटे कीट
तहरीर – लिखावट, लिखना, लिखाई

रवि कुमार

( “बनास जन” के नये अंक में ( फरवरी-अप्रेल, 2012 ) में कुछ कविताएं आई हैं. उनमें ये दोनों कविताएं भी शामिल हैं. )