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व्यापक जन-आंदोलन का माहौल बनाना होगा

सामान्य

द्वितीय शिवराम स्मृति दिवस समारोह
व्यापक जन-आंदोलन का माहौल बनाना होगा

कोटा, 2 अक्टूबर 2012. सुप्रसिद्ध कवि, नाट्य लेखक, निर्देशक, समीक्षक एवं विचारक शिवराम के द्वितीय स्मृति दिवस पर ‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच, श्रमजीवी विचार मंच एवं अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच द्वारा 30 सितम्बर व 1 अक्टूबर को ‘आशीर्वाद हॉल’ कोटा में दो दिवसीय वृहत साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजन किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य शिवराम द्वारा जीवन-पर्यन्त साहित्य, संस्कृति, समाज, राजनीति एवं विविध क्षेत्रों में किये गये प्रयत्नों को एकसूत्रता में पिरोना, उनकी स्मृति को संकल्प में तथा शोक को संकल्प में ढालने का साझा प्रयास था। आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से आमंत्रित लेखकों व संस्कृतिकर्मियों के अलावा हाड़ौती-अंचल के करीब दो सौ से अधिक रचनाकार, श्रोता व पाठक शामिल हुए।

इस महत्वपूर्ण आयोजन में जनवादी रचनाकारों व संस्कृतिकर्मियों ने बाजारवादी अप-संस्कृति एवं सामन्ती संस्कृति के खिलाफ नई जनपक्षधर संस्कृति का विकल्प खड़ा करने की जरूरत बताई। साथ ही बताया कि पूंजीवादी राजनीति का घिनौना चेहरा जनतांत्रिक मूल्यों को तहस-नहस कर रहा है। ऐसे में व्यापक जन-आंदोलन का माहौल बनाना होगा। आयोजन का प्रारम्भ 30 सितम्बर को मुख्य अतिथि, ‘विकल्प’ अ.भा. जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ( मुजफ्फरपुर ) द्वारा मशाल प्रज्ज्वलित करके किया गया। सुप्रसिद्ध भोजपुरी गायक दीपक कुमार ( सीवान ) की अगुआई में मोर्चा के बैनर-गीत ‘ये वक्त की आवाज है मिल के चलो’ के पश्चात् वासुदेव प्रसाद ( गया) , प्रशांत पुष्कर ( सीवान ) एवं शरद तैलंग ( कोटा ) द्वारा शिवराम के जन-गीतों तथा गण-संगीत की प्रभावी प्रस्तुति की गई। ‘विकल्प’ जनसांस्कृतिक मंच के सचिव शकूर अनवर द्वारा स्वागत-वक्तव्य में अतिथियों का स्वागत करते हुए आयोजन के उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया।

अपरान्ह 3 बजे ‘‘सांस्कृतिक नव जागरण: परिदृश्य एवं संभावनाऐं’’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में दिल्ली, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश व अन्य स्थानों के जाने-माने साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये। विशिष्ट-अतिथि हरेराम ‘समीप’ ( फरीदाबाद ) ने कहा कि कार्पोरेट घरानों और शासक दलों की सांठ-गांठ के चलते विषमता और असमानता चरम पर पहुंच गई है। सांस्कृतिक क्षरण भी चरम पर है। ऐसे दुर्योधन-वक्त में व्यापक जन-आंदोलन खड़ा करने के लिए जनता को जगाना होगा। शैलेन्द्र चैहान ( दिल्ली ) ने कहा कि हमें सामंती संस्कृति के मुकाबले नई वैकल्पिक संस्कृति का निर्माण करना होगा। डॉ. रामशंकर तिवारी ( फरीदाबाद ) ने कहा कि सामंतवादी संस्कृति आज भी समाज में मौजूद है। दक्षिणपंथी ताकतें पुनरुत्थान आंदोलन चला रही हैं। दलितों, आदिवासियों और महिलाओं से भेदभाव के संस्कार हमारे व्यक्तित्व में अंदर तक है। तीज-त्यौहार भी बाजारवादी संस्कृति के हवाले होते जा रहे हैं।

डॉ. मंजरी वर्मा ( मुजफ्फरपुर ) ने कहा कि हमारी संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से कई तरह की खामियां पैदा हो गई हैं। शिवराम ने जिस तरह गांव-गांव जाकर नाटकों के मंचन से जन-संस्कृति की अलख जगाई थी, उसी तर्ज पर हमें जुटना होगा। नारायश शर्मा ( कोटा ) ने कहा कि संस्कृति के क्षेत्र में घालमेल नहीं होना चाहिए। मीडिया दिन-रात मुट्ठीभर अमीरों की संस्कृति का प्रचार कर रहा है, सांस्कृतिक नव-जागरण के लिए करोड़ों गरीबों व मेहनतकशों की संस्कृति का परचम ही उठाना होगा। पटना से आये विजय कुमार चैधरी ने कहा कि इन दिनों प्रगतिशील-जनवादी संस्कृतिकर्मियों व उनकी पत्रिकाओं के बीच भी रहस्यवाद, भाग्यवाद व कलावाद के पक्षधर स्थान पाने लगे हैं, इस प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए। डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ने समाहार करते हुए कहा कि इस समय बाजारवादी – सामंती संस्कृति अपने पतन की पराकाष्ठा पर है तथा आम-जन को गहरे भटकावों में फॅंसा रही है। ऐसे समय में हमें भारतेन्दु, प्रेमचन्द, राहुल, निराला, नागार्जुन, यादवचन्द्र व शिवराम की तरह जनता को जगाने के लिए देशव्यापी सांस्कृतिक अभियान छेड़ना होगा।

अध्यक्ष मण्डल की ओर से बोलते हुए तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी. यादव ने कहा कि किसी भी देश के विकास में विचार की मुख्य भूमिका होती है। डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि जागरूक संस्कृति कर्म द्वारा समाज की प्रचलित रूढि़यों व मूल्यहीनता को एक हद तक रोका जा सकता है। परिचर्चा में टी.जी. विजय कुमार, शून्य आकांक्षी, वीरेन्द्र विद्यार्थी एवं विजय सिंह पालीवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संचालन महेन्द्र नेह ने किया।

समारोह के दूसरे दिन 1 अक्टूबर, 12 को शिवराम द्वारा लिखित नाटक ‘नाट्य-रक्षक’ की बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति ‘अनाम’ कोटा के कलाकारों द्वारा की गई। नाटक में वर्तमान ‘मतदान-पद्धति’, जिसे भारतीय लोकतंत्र का आधार बताकर प्रचारित किया जाता है, का चरित्र पूरी तरह पैसे और बाहुबल द्वारा निर्धारित हो जाने पर करारा व्यंग्य किया गया। अजहर अली द्वारा निर्देशित इस नाटक में प्रमुख पात्रों की भूमिका डॉ पवन कुमार स्वर्णकार, भरत यादव, रोहित पुरुषोत्तम, आकाश सोनी, तपन झा, गौरांग, देवेन्द्र खुराना, राकेश, सचिन राठौड़ व अजहर अली ने निभाई। गया से पधारे नाट्य-कर्मी वासुदेव एवं कृष्णा जी द्वारा प्रेमचन्द की कहानी ‘सद्गति’ की मगही भाषा में प्रभावी नाट्य-प्रस्तुति भी की गई।

इस अवसर पर ‘विकल्प’ अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी सम्पन्न हुई। बैठक में मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव महेन्द्र नेह द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय परिस्थितियों में आ रहे महत्वपूर्ण परिवर्तनों को रेखांकित करते हुए साहित्य व संस्कृति के क्षेत्र में शहर से गांवों तक जन-संस्कृति की मुहिम छेड़ने, देशभर में प्रगतिशील जनवादी लेखकों व संस्कृतिकर्मियों के बीच व्यापक एकता विकसित करने तथा संस्कृतिकर्म को मेहनतकश जनता के जीवन-संघर्षों से जोड़ने पर बल दिया गया। बैठक में संगठन को मजबूत करने के साथ आगामी कार्यक्रम की रूपरेखा भी निर्धारित की गई।

इस समारोह में रवि कुमार ( रावतभाटा ) द्वारा, कविता-पोस्टर प्रदर्शनी और ‘विकल्प’ द्वारा एक लघु-पुस्तिका प्रदर्शनी भी लगाई गई थी जिसमें दर्शकों और पाठकों ने अपनी गहरी रुचि प्रदर्शित की। ‘कविता पोस्टर प्रदर्शनी’ का उद्घाटन तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी. यादव द्वारा किया गया। इस अवसर पर शिवराम की पत्नी श्रीमती सोमवती देवी एवं अन्य अतिथियों द्वारा महेन्द्र नेह द्वारा संपादित ‘अभिव्यक्ति’ पत्रिका के शिवराम विशेषांक का लोकार्पण किया गया।

1 अक्टूबर को दूसरे सत्र में वृहत् कवि-सम्मेलन एंव मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता निर्मल पाण्डेय व अखिलेश अंजुम ने की। विशिष्ट अतिथि जनवादी कवि अलीक ( रतलाम ), मदन मदिर ( बूंदी ) व सी.एल. सांखला ( टाकरवाड़ा ) सहित अंचल के प्रतिनिधि कवियों व शायरों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। ओम नागर, हितेश व्यास व उदयमणि द्वारा शिवराम को समर्पित कविताऐं सुनाईं। संचालन आर.सी. शर्मा ‘आरसी’ द्वारा किया गया। स्वागत-समिति की ओर से दिनेशराय द्विवेदी, जवाहरलाल जैन, धर्मनारायण दुबे, शब्बीर अहमद व परमानन्द कौशिक द्वारा सभी अतिथियों व सहभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

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‘अभिव्यक्ति’ का नया 39वां अंक उपलब्ध हो गया है. शिवराम पर केन्द्रित इस विशेषांक का मूल्य 50 रुपये है. मंगाने के लिए संपादक महेन्द्र नेह से संपर्क किया जा सकता है.

महेन्द्र नेह
80, प्रताप नगर, दादाबाड़ी, कोटा-323309
ईमेल – mahendraneh@gmail.com
दूरभाष – 0744-2501944, चलभाष – 09314416444

‘अनाम’ की नाट्य प्रस्तुति – शिवराम को रचनात्मक श्रृद्धांजलि

सामान्य

अनाम’ की नाट्य प्रस्तुति
“ईश्वर अल्लाह तेरो नाम” का प्रभावी मंचन
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी साथी शिवराम को दी गई रचनात्मक श्रृद्धांजलि

shivram - sketch by ravi kumar, rawatbhata२५ दिसंबर २०११. कोटा की रंगकर्मी संस्था ‘अनाम’ अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच के रंगकर्मी साथियों ने ‘अनाम’ के संस्थापक, प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं रंगकर्मी साथी शिवराम के निधन के पश्चात हर वर्ष उनके जन्मदिवस पर उनकी स्मृति को समर्पित एक नाट्य प्रस्तुति करने का संकल्प किया था। इसी श्रृंखला में शिवराम के ६३वें जन्मदिवस ( २३ दिसंबर ) के अवसर पर उनको रचनात्मक श्रृंद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन ऐलन इंस्टिट्यूट स्थित सद्‍भाव सभागार में किया गया। इस आयोजन में गीत-दोहों की संगीतमयी प्रस्तुति और प्रबोध जोशी लिखित मशहूर नाटक ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ का मंचन किया गया।

संचालन करते हुए ‘विकल्प’ के अध्यक्ष महेन्द्र नेह ने शिवराम के संघर्षमयी जीवन और क्रांतिकारी मूल्यों पर एक संक्षिप्त वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि शिवराम एक उच्च कोटि के विचारक, सृजनधर्मी, संघर्षशील साथी तो थे ही, लेकिन इससे भी बढ़कर इंसानियत का गहरा जज़्बा और संवेदशीलता उनके रोम-रोम से व्यक्त होती थी। मेहनतकश जन-गण की मुक्ति तथा शोषण-विहीन, पाखण्ड रहित, ज्ञान-विज्ञान-कला और संस्कृति से समृद्ध एवं समानता पर आधारित उन्नत भारत उनके सपनों और संकल्पों की घुरी था। अपने सपनों और संकल्पों को ज़मीन पर उतारने के लिए उन्होंने कई सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्थाओं, ट्रेड यूनियनों-किसान-युवा-छात्र एवं तानाशाही व सांप्रदायिकता विरोधी जन-अधकार संगठनों में स्वयं को खपा कर काम किया और देश भर में अपने सह-विचारकों, सह-कर्मियों, मित्रों व शुभ-चिंतकों का एक विशाल कारवां तैयार किया। उन्होंने कहा कि नाटक के मोर्चे पर उनकी जलाई इस मशाल को कोटा में आशीष मोदी, कपिल सिद्धार्थ, पवन कुमार, अज़हर अली और अनाम के अन्य नौजवान साथियों ने जलाए रखने तथा उनके संकल्पों तथा कार्यों को आगे बढ़ाने का जो संकल्प लिया है और उसे चरितार्थ कर रहे हैं वही उनके प्रति एक सच्ची साथियाना श्रृद्धांजलि है।

कार्यक्रम की शुरुआत में शिवराम द्वारा लिखित गीतों और दोहों को कोटा के ही वरिष्ठ गीतकार एवं संगीतज्ञ शरद तैलंग ने संगीतबद्ध स्वर प्रदान कर उनके प्रभाव को अधिक मार्मिक बना कर प्रस्तुत किया। डॉ.राजश्री गोहटकर ने भी गीत प्रस्तुत किये।

अनाम के साथियों ने इस बार अपनी प्रस्तुति के लिए प्रबोध जोशी के नाटक ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ को चुना। आज की परिस्थितियों में जबकि साम्प्रदायिक और विघटनकारी शक्तियां उभार पर हैं और समाज में नकारात्मक परिदृश्य रचना चाहती हैं, ऐसे में यह नाटक और अधिक मौजूं बनकर सामने आता है। आज़ादी के समय के विभाजन की पृष्ठभूमि में एक पागलखाने पर इसके असरों की पड़ताल के जरिए यह नाटक विभाजन का, सांप्रदायिक और विघटनकारी मूल्यों का मखौल उड़ाता है और साम्प्रदायिक सौहार्द और एकता के नये तर्क गढ़ता है।

इस नाटक में एक पागलखाने में विभिन्न प्रतीकात्मक चरित्र हैं जो अपनी सामान्य पर विशिष्ट दिनचर्याओं में हैं। विभाजन के वक़्त पागलों की भी अदला-बदली का एक आदेश पागलखाने में हड़कंप मचा देता है और शुरुआत होती है नाटकीयताओं से भरपूर दृश्यों की जिनमें डूबते-उतरते दर्शक सभ्य-समाज के साम्प्रदायिक एवं विघटनकारी जैसे पागलपनें के मूल्यों के मखौल और पागलों के सहज मानवतावादी सौहार्द के मूल्यों के साथ अपने को एकाकार करते जाते हैं। कोटा के ही प्रमुख नाट्य-निर्देशक ललित कपूर के सधे हुए निर्देशन में इस नाटक की कोलाज़मयी प्रस्तुति और भी प्रभावशाली हो गई थी जिसको दर्शकों ने भी भरपूर सराहा।

ईश्वर और अल्लाह की मुख्य चरित्र भूमिकाओं में आशीष मोदी और अज़हर अली ने अपने मार्मिक अभिनय द्वारा दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। सुपरिटेण्डेंट की भूमिका में डॉ.पवन कुमार स्वर्णकार, अनामी की भूमिका में राजेश शर्मा (आकाश), विनोद की भूमिका में राजकुमार चौहान, आइजैक की भूमिका में अभियंक व्यास तथा युवती की भूमिका में राजकुमारी ने अपने सराहनीय अभिनय के द्वारा दर्शकों की खूब दाद पाई। संगीत की कमान मनीष सोनी और मोहन सिंह ने संभाली। मैकअप व मंच की अन्य व्यवस्थाएं रोहित पुरुषोत्तम, शिवकुमार एवं रवि कुमार के हाथों में थी।

इस अवसर पर ही अर्जुन कवि स्मृति संस्थान ( राजस्थान ) द्वारा शिवराम को उनके साहित्य एवं रंगकर्म के क्षेत्र में दिये गये विशिष्ट सृजनात्मक योगदान के लिए निधन उपरांत ‘अर्जुन कवि जनवाणी सम्मान’ से सम्मानित भी किया गया। यह सम्मान शिवराम की मां कलावती देवी और पत्नी सोमवती देवी ने ग्रहण किया।

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रवि कुमार

अनाम की नाट्य प्रस्तुतियों के छायाचित्र

सामान्य

नाट्य प्रस्तुतियों के छायाचित्र
अनाम के युवा साथियों को अभिवादन सहित

शिवरामगत २३ दिसंबर को शिवराम के ६२वें जन्मदिवस पर उनकी स्मृति को रचनात्मक अभिवादन के लिए अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच ( अनाम ) द्वारा उन्हीं के लिखित एवं निर्देशित दो नाटकों ‘घुसपैठिये’ तथा ‘जनता पागल हो गई है’ का एल्बर्ट आइंस्टाइन स्कूल, कोटा में मंचन किया गया. इसकी औपचारिक विस्तृत रिपोर्ट श्री दिनेशराय द्विवेदी जी ‘अनवरत’ पर पेश कर चुके हैं, सोचा यहां कुछ अनौपचारिक सी बातें कर ली जाएं.

शिवराम और उनके युवा साथियों ने इस संस्था का गठन नाटक संबंधी गतिविधियों पर केंद्रित रहने के लिये किया था. शिवराम संरक्षकीय भूमिका में इसके अध्यक्ष थे और दिशा-निर्देश दिया करते थे. नाटकों का निर्देशन करना, युवा साथियों का हौसला बनाए रखना, उन्हें वैचारिक रूप से संस्कारित करते रहना और सभी को एक टीम के तरह पेश आने और दिखने की प्रेरणा देते रहना भर ही उनका हस्तक्षेप था. बाकी सभी संस्थागत कार्य, प्रस्तुति संबंधी जिम्मेदारियों और नाटकों में अभिनय की महती भूमिका का निर्वाह सभी युवा साथी ही किया करते थे. कुछ साथी संस्थागत जिम्मेदारियों में प्रवीण हो रहे थे, कुछ अभिनय में, और कुछ साथी दोनों ही मोर्चों पर कमान संभाले हुए संस्था की मुख्य रीढ़. सभी बराबर के से नौजवान, कुछ तो नये-नये किशोर छात्र. वैसे जो अब नौजवान कहाये जा रहे हैं वे भी अपने छात्र-किशोर जीवन से ही शिवराम के नाटक प्रदर्शनों से जुड़े हुए हैं. कुल मिलाकर अपरिपक्व से व्यक्तित्वों का गठजोड़ सा लगता था पर जिनकी अभिनय और प्रस्तुतिकरण क्षमताएं कमाल की हो रही थीं.

हम भी इसी तरह से उनके साथ होते थे और जल्द ही अपने-अपने आजीवीकीय कारणों से कोटा से दूर हुए और अभिनय और व्यवस्था संबंधी मुख्य धारा से कट गये. परंतु हाशिये का सा साथ लगातार बना ही रहा और कई कार्यक्रमों और अभियानों में सक्रिय भागीदारी भी हुई. यह सब इसलिए कहा जा रहा है कि शिवराम के नहीं रहने के बाद कभी-कभी यह ख़्याल उभर आता था कि अब इस संस्था, इस नौजवान दल और इसके जरिये पैदा हुई एक सार्थक हस्तक्षेप की परंपरा का क्या होगा? क्या सब यूं ही बिखर जाएगा और ये सारे नौजवान अपनी-अपनी खलाओं में उलझ कर रह जाएंगे? क्या ये युवा साथी अपने थोड़े-बहुत व्यक्तिगत ऊंहापोहों और महत्त्वाकांक्षाओं की टकराहटों की भैट चढ़ जाएंगे?

पर ऐसा नहीं हुआ, और ना ही ऐसी कोई संभावनाएं दूर-दूर तक नज़र आईं। इसी दल को पूर्व की भांति ही एक-साथ काम करते देख कर सारे भ्रम दूर हुए. सारे युवा साथी उसी जोशो-खम के साथ, उसी एकजुटता की भावना के साथ, उसी समर्पण के साथ, उसी प्रतिबद्धता के साथ जुटे हुए थे जब हम उनके इस प्रदर्शन की तैयारियों के हमराही हुए. बल्कि जिम्मेदारी का भाव और गहरा हो कर उभरा है, अचानक ही जैसे परिपक्वता अपने परवान पर पहुंच गई है. ये शब्द उनके इसी जज़्बे को सलाम और अभिवादन सहित.

आशीष मोदी, कपिल सिद्धार्थ और पवन कुमार जहां व्यवस्था की जिम्मेदारियों में मुख्य भूमिका में हैं, वहीं अभिनय के मोर्चे पर भी उसी ऊंचाई के साथ पूरी तरह मुस्तैद हैं. अज़हर अली और रोहित पुरुषोत्तम मंझे हुए अभिनेता की तरह सन्नद्ध हैं. संजीव शर्मा और मनोज शर्मा अपनी अभिनय सामर्थ्य को काफ़ी बेहतर कर चुके है और प्रतिबद्ध अभिनेता हैं. राजकुमार चौहान, रोहन शर्मा भी अपनी गंभीर जुंबिशों से बहुत तेज़ी से अभिनय के पायदान पर चढ़ रहे हैं. सुधीर पुराने अभिनेता है, पर इस बार वे अपनी ढोलक और रामू शर्मा के साथ संगीत का महत्त्वपूर्ण मोर्चा संभाले हुए थे. आकाश सोनी तथा आशीष सोनी अभी किशोर-वय के हैं और अभिनय-यात्रा शुरु कर रहे हैं पर समर्पण और लगन के पक्के. अतिथी भूमिकाओं की तरह शशि कुमार और मैंने भी पुराने दिन याद करने की कोशिश की. रोहित पुरुषोत्तम ने श्रृंगार-व्यवस्था भी देखी. शिवकुमार वर्मा इस बार अभिनय नहीं कर पाये पर व्यवस्थाओं में जुटे रहे. एक और युवा साथी ऋचा शर्मा भी इस बार दूसरी भूमिका में थीं, उन्होंने दोनों नाटकों के बीच के अंतराल में शिवराम की कविताओं का सस्वर भावप्रवण पाठ किया. और भी कई युवा साथी थे जो किसी वज़ह से प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं कर पा रहे थे पर किसी ना किसी रूप में जुड़े रहकर अपनी भावनात्मक उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहे थे.

इन युवा साथियों को शहर के अन्य रंगकर्मियों का भी भरसक सहयोग मिला. जहां वरिष्ठ रंगकर्मी अरविद शर्मा ने नाटकों की तैयारियों में निर्देशनीय सहयोग दिया तथा ललित कपूर ने प्रकाश व्यवस्था में, वहीं रंगकर्मी एकता संघ ( रास ) के साथियों  रजनीश, संदीप रॉय ने कुछ साधन जुटाने में यथायोग्य मदद की. ‘विकल्प’ जन सांस्कॄतिक मंच के अध्यक्ष महेन्द्र नेह तो हर तरह से इन युवा साथियों के साथ थे ही, उन्होंने निमंत्रण-पत्र, पम्पलैट तैयार कराए और कार्यक्रम का संचालन भी किया. डॉ. गणेश तारे ने धन्यवाद ज्ञापित किया, साथ ही उन्होंने अपने एल्बर्ट आइंस्टाइन स्कूल को भी अनाम को रिहर्सल और प्रस्तुतियों के लिए हमेशा की तरह ही सहर्ष उपलब्ध कराया.

इस बार यहां उपरोक्त प्रस्तुतियों के छायाचित्र हैं, और इनमें विभिन्न भूमिकाएं निभाने वाले इन्हीं साथियों के उन्हीं भूमिकाओं में रचे-बसे छायाचित्र भी.

आशीष मोदी

आशीष मोदी, ‘घुसपैठिए’ में सूत्रधार व नट-२ और ‘जनता पागल हो गई है’ में जनता

डॉ. पवन कुमार स्वर्णकार

डॉ. पवन कुमार स्वर्णकार, ‘घुसपैठिए’ में नेता, भ्रष्टाचार, व सैनिक-१ की भूमिका

कपिल सिद्धार्थ

कपिल सिद्धार्थ, ‘जनता पागल हो गई है’ में पूंजीपति की भूमिका

अज़हर अली

अज़हर अली, ‘घुसपैठिए’ में कश्मीरी वृद्ध, ख़ुदगर्जी व सैनिक और ‘जनता पागल हो गई है’ में पागल की भूमिका

रोहित पुरुषोत्तम

रोहित पुरुषोत्तम, ‘घुसपैठिए’ में आतंकवादी-२, साबुनवाला व गैर-जिम्मेदारी और ‘जनता पागल हो गई है’ में नेता

संजीव शर्मा

संजीव शर्मा, ‘घुसपैठिए’ में विदेशी-२ और ‘जनता पागल हो गई है’ में पुलिस अधिकारी की भूमिका

राजकुमार चौहान

राजकुमार चौहान, ‘घुसपैठिए’ में आतंकवादी-१, निकम्मापन वे कप्तान की भूमिका

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा, ‘घुसपैठिए’ में सैनिक-२, संवेदनहीनता और ‘जनता पागल हो गई है’ में सिपाही-१ की भूमिका

रोहन शर्मा

रोहन शर्मा, ‘घुसपैठिए’ में नट-१ और ‘जनता पागल हो गई है’ में सिपाही-२ की भूमिका

शशि कुमार

शशि कुमार, ‘घुसपैठिए’ में विदेशी-१, फिरकापरस्ती की भूमिका

आशीष सोनी

आशीष सोनी, ‘घुसपैठिए’ में सब्जीवाला की भूमिका

आकाश सोनी

आकाश सोनी, ‘घुसपैठिए’ में दातुनवाला की भूमिका

रवि कुमार

रवि कुमार, ‘घुसपैठिए’ में कारगिल की भूमिका

सुधीर शर्मा

सुधीर शर्मा, दोनों नाटकों में ढोलक पर संगीत

ऋचा शर्मा

ऋचा शर्मा, शिवराम की कविताओं की भावप्रवण प्रस्तुति

अरविंद शर्मा

अरविंद शर्मा, नाटकों में विशेष-सहयोग

ललित कपूर

ललित कपूर, प्रकाश में विशेष-सहयोग

महेन्द्र नेह

महेन्द्र नेह, कार्यक्रम का संचालन

डॉ. गणेश तारे

डॉ. गणेश तारे, धन्यवाद ज्ञापन

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रवि कुमार