नाट्य प्रस्तुतियों के छायाचित्र
अनाम के युवा साथियों को अभिवादन सहित
गत २३ दिसंबर को शिवराम के ६२वें जन्मदिवस पर उनकी स्मृति को रचनात्मक अभिवादन के लिए अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच ( अनाम ) द्वारा उन्हीं के लिखित एवं निर्देशित दो नाटकों ‘घुसपैठिये’ तथा ‘जनता पागल हो गई है’ का एल्बर्ट आइंस्टाइन स्कूल, कोटा में मंचन किया गया. इसकी औपचारिक विस्तृत रिपोर्ट श्री दिनेशराय द्विवेदी जी ‘अनवरत’ पर पेश कर चुके हैं, सोचा यहां कुछ अनौपचारिक सी बातें कर ली जाएं.
शिवराम और उनके युवा साथियों ने इस संस्था का गठन नाटक संबंधी गतिविधियों पर केंद्रित रहने के लिये किया था. शिवराम संरक्षकीय भूमिका में इसके अध्यक्ष थे और दिशा-निर्देश दिया करते थे. नाटकों का निर्देशन करना, युवा साथियों का हौसला बनाए रखना, उन्हें वैचारिक रूप से संस्कारित करते रहना और सभी को एक टीम के तरह पेश आने और दिखने की प्रेरणा देते रहना भर ही उनका हस्तक्षेप था. बाकी सभी संस्थागत कार्य, प्रस्तुति संबंधी जिम्मेदारियों और नाटकों में अभिनय की महती भूमिका का निर्वाह सभी युवा साथी ही किया करते थे. कुछ साथी संस्थागत जिम्मेदारियों में प्रवीण हो रहे थे, कुछ अभिनय में, और कुछ साथी दोनों ही मोर्चों पर कमान संभाले हुए संस्था की मुख्य रीढ़. सभी बराबर के से नौजवान, कुछ तो नये-नये किशोर छात्र. वैसे जो अब नौजवान कहाये जा रहे हैं वे भी अपने छात्र-किशोर जीवन से ही शिवराम के नाटक प्रदर्शनों से जुड़े हुए हैं. कुल मिलाकर अपरिपक्व से व्यक्तित्वों का गठजोड़ सा लगता था पर जिनकी अभिनय और प्रस्तुतिकरण क्षमताएं कमाल की हो रही थीं.
हम भी इसी तरह से उनके साथ होते थे और जल्द ही अपने-अपने आजीवीकीय कारणों से कोटा से दूर हुए और अभिनय और व्यवस्था संबंधी मुख्य धारा से कट गये. परंतु हाशिये का सा साथ लगातार बना ही रहा और कई कार्यक्रमों और अभियानों में सक्रिय भागीदारी भी हुई. यह सब इसलिए कहा जा रहा है कि शिवराम के नहीं रहने के बाद कभी-कभी यह ख़्याल उभर आता था कि अब इस संस्था, इस नौजवान दल और इसके जरिये पैदा हुई एक सार्थक हस्तक्षेप की परंपरा का क्या होगा? क्या सब यूं ही बिखर जाएगा और ये सारे नौजवान अपनी-अपनी खलाओं में उलझ कर रह जाएंगे? क्या ये युवा साथी अपने थोड़े-बहुत व्यक्तिगत ऊंहापोहों और महत्त्वाकांक्षाओं की टकराहटों की भैट चढ़ जाएंगे?
पर ऐसा नहीं हुआ, और ना ही ऐसी कोई संभावनाएं दूर-दूर तक नज़र आईं। इसी दल को पूर्व की भांति ही एक-साथ काम करते देख कर सारे भ्रम दूर हुए. सारे युवा साथी उसी जोशो-खम के साथ, उसी एकजुटता की भावना के साथ, उसी समर्पण के साथ, उसी प्रतिबद्धता के साथ जुटे हुए थे जब हम उनके इस प्रदर्शन की तैयारियों के हमराही हुए. बल्कि जिम्मेदारी का भाव और गहरा हो कर उभरा है, अचानक ही जैसे परिपक्वता अपने परवान पर पहुंच गई है. ये शब्द उनके इसी जज़्बे को सलाम और अभिवादन सहित.
आशीष मोदी, कपिल सिद्धार्थ और पवन कुमार जहां व्यवस्था की जिम्मेदारियों में मुख्य भूमिका में हैं, वहीं अभिनय के मोर्चे पर भी उसी ऊंचाई के साथ पूरी तरह मुस्तैद हैं. अज़हर अली और रोहित पुरुषोत्तम मंझे हुए अभिनेता की तरह सन्नद्ध हैं. संजीव शर्मा और मनोज शर्मा अपनी अभिनय सामर्थ्य को काफ़ी बेहतर कर चुके है और प्रतिबद्ध अभिनेता हैं. राजकुमार चौहान, रोहन शर्मा भी अपनी गंभीर जुंबिशों से बहुत तेज़ी से अभिनय के पायदान पर चढ़ रहे हैं. सुधीर पुराने अभिनेता है, पर इस बार वे अपनी ढोलक और रामू शर्मा के साथ संगीत का महत्त्वपूर्ण मोर्चा संभाले हुए थे. आकाश सोनी तथा आशीष सोनी अभी किशोर-वय के हैं और अभिनय-यात्रा शुरु कर रहे हैं पर समर्पण और लगन के पक्के. अतिथी भूमिकाओं की तरह शशि कुमार और मैंने भी पुराने दिन याद करने की कोशिश की. रोहित पुरुषोत्तम ने श्रृंगार-व्यवस्था भी देखी. शिवकुमार वर्मा इस बार अभिनय नहीं कर पाये पर व्यवस्थाओं में जुटे रहे. एक और युवा साथी ऋचा शर्मा भी इस बार दूसरी भूमिका में थीं, उन्होंने दोनों नाटकों के बीच के अंतराल में शिवराम की कविताओं का सस्वर भावप्रवण पाठ किया. और भी कई युवा साथी थे जो किसी वज़ह से प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं कर पा रहे थे पर किसी ना किसी रूप में जुड़े रहकर अपनी भावनात्मक उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहे थे.
इन युवा साथियों को शहर के अन्य रंगकर्मियों का भी भरसक सहयोग मिला. जहां वरिष्ठ रंगकर्मी अरविद शर्मा ने नाटकों की तैयारियों में निर्देशनीय सहयोग दिया तथा ललित कपूर ने प्रकाश व्यवस्था में, वहीं रंगकर्मी एकता संघ ( रास ) के साथियों रजनीश, संदीप रॉय ने कुछ साधन जुटाने में यथायोग्य मदद की. ‘विकल्प’ जन सांस्कॄतिक मंच के अध्यक्ष महेन्द्र नेह तो हर तरह से इन युवा साथियों के साथ थे ही, उन्होंने निमंत्रण-पत्र, पम्पलैट तैयार कराए और कार्यक्रम का संचालन भी किया. डॉ. गणेश तारे ने धन्यवाद ज्ञापित किया, साथ ही उन्होंने अपने एल्बर्ट आइंस्टाइन स्कूल को भी अनाम को रिहर्सल और प्रस्तुतियों के लिए हमेशा की तरह ही सहर्ष उपलब्ध कराया.
इस बार यहां उपरोक्त प्रस्तुतियों के छायाचित्र हैं, और इनमें विभिन्न भूमिकाएं निभाने वाले इन्हीं साथियों के उन्हीं भूमिकाओं में रचे-बसे छायाचित्र भी.

आशीष मोदी, ‘घुसपैठिए’ में सूत्रधार व नट-२ और ‘जनता पागल हो गई है’ में जनता

डॉ. पवन कुमार स्वर्णकार, ‘घुसपैठिए’ में नेता, भ्रष्टाचार, व सैनिक-१ की भूमिका

कपिल सिद्धार्थ, ‘जनता पागल हो गई है’ में पूंजीपति की भूमिका

अज़हर अली, ‘घुसपैठिए’ में कश्मीरी वृद्ध, ख़ुदगर्जी व सैनिक और ‘जनता पागल हो गई है’ में पागल की भूमिका

रोहित पुरुषोत्तम, ‘घुसपैठिए’ में आतंकवादी-२, साबुनवाला व गैर-जिम्मेदारी और ‘जनता पागल हो गई है’ में नेता

संजीव शर्मा, ‘घुसपैठिए’ में विदेशी-२ और ‘जनता पागल हो गई है’ में पुलिस अधिकारी की भूमिका

राजकुमार चौहान, ‘घुसपैठिए’ में आतंकवादी-१, निकम्मापन वे कप्तान की भूमिका

मनोज शर्मा, ‘घुसपैठिए’ में सैनिक-२, संवेदनहीनता और ‘जनता पागल हो गई है’ में सिपाही-१ की भूमिका

रोहन शर्मा, ‘घुसपैठिए’ में नट-१ और ‘जनता पागल हो गई है’ में सिपाही-२ की भूमिका

शशि कुमार, ‘घुसपैठिए’ में विदेशी-१, फिरकापरस्ती की भूमिका

आशीष सोनी, ‘घुसपैठिए’ में सब्जीवाला की भूमिका

आकाश सोनी, ‘घुसपैठिए’ में दातुनवाला की भूमिका

रवि कुमार, ‘घुसपैठिए’ में कारगिल की भूमिका

सुधीर शर्मा, दोनों नाटकों में ढोलक पर संगीत

ऋचा शर्मा, शिवराम की कविताओं की भावप्रवण प्रस्तुति

अरविंद शर्मा, नाटकों में विशेष-सहयोग

ललित कपूर, प्रकाश में विशेष-सहयोग

महेन्द्र नेह, कार्यक्रम का संचालन

डॉ. गणेश तारे, धन्यवाद ज्ञापन












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रवि कुमार