मैं पुरुष खल कामी

सामान्य

मैं पुरुष खल कामी

००००००

चित्र - रवि कुमार, रावतभाटा

मैं पुरुष हूं
एक लोहे का सरिया है
सुदर्शन चक्र सा यह
बार-बार लौट आता है, इतराता है

यह भी मैं ही हूं
आदि-अनादि से, हजारों सालों से
मैं ही हूं जो रहा परे सभी सवालों से

मैं सदा से हूं
मैं अदा से हूं

मैं ही दुहते हुए गाय के स्तनों को
रच रहा था अविकल ऋचाएं
मैं ही स्खलित होते हुए उत्ताप में
रच रहा था पुराण गाथाएं

मैं ही रखने को अपनी सत्ता अक्षुण्ण
गढ़ रहा था अनुशासन स्मृतियां
मैं ही स्वर्गलोक के आरोहण को
गढ़ रहा था महाकाव्य-कृतियां

मैं ही था हर जगह
शासन की परिभाषाओं में
शोर्य की गाथाओं में
मैं ही था स्वर्ग के सिंहासन पर
अश्वमेधी यज्ञों पर
चतुर्दिक लहराते दंड़ों पर

मैं ही निष्कासनों का कर्ता था
मैं ही आश्रमों-आवासों में शील-हर्ता था
मैंनें ही रास रचाए थे
मैंने ही काम-शास्त्रों में पात्र निभाए थे

मै ही क्षीर-सागर में पैर दबवाता हूं
मैं अपनी लंबी आयु के लिए व्रत करवाता हूं
मैं ही उन अंधेरी गंद वीथियों में हूं
मैं ही इन इज्ज़त की बंद रीतियों में हूं

मैं ही परंपराएं चलाती खापों में हूं
गर्दन पर रखी खटिया की टांगों में हूं
ये मेरे ही पैर हैं जिसमें जूती है
ये मेरी ही मूंछे है जो कपाल को छूती हैं

ये मेरा ही शग़ल है, वीरता है
ये मेरा ही दंभ है जो सलवारों को चीरता है
कि नरक के द्वार को
मैं बंद कर सकता हूं तालों से
मैं पत्थरों से इसे पाट सकता हूं
मैं इसे नाना तरीक़ों से कील सकता हूं

मैं ब्रह्म हूं, मैं नर हूं
मैं अजर-अगोचर हूं
मेरी आंखों में
हरदम एक भूखी तपिश है
मेरी उंगलियों में
हरदम एक बेचैन लरजिश है

मेरी जांघों में
एक लपलपाता दरिया है
मेरे हाथों में
एक दंड है, एक सरिया है

मैं सदा से इसी सनातन खराश में हूं
मैं फिर-फिर से मौकों की तलाश में हूं…

०००००

रवि कुमार

14 responses »

  1. .
    .
    .
    मै ही क्षीर-सागर में पैर दबवाता हूं
    मैं अपनी लंबी आयु के लिए व्रत करवाता हूं
    मैं ही उन अंधेरी गंद वीथियों में हूं
    मैं ही इन इज्ज़त की बंद रीतियों में हूं
    मैं ही परंपराएं चलाती खापों में हूं
    गर्दन पर रखी खटिया की टांगों में हूं

    मैं, हाँ मैं ही पुरूष हूँ… बेहतर कटाक्ष…

    ये मेरे ही पैर हैं जिसमें जूती है
    ये मेरी ही मूंछे है जो कपाल को छूती हैं

  2. ऐसे ही खल कामियों ने हर पवित्र बातों मेँ गंदगी आलेखित कर प्रत्येक सदाचार को भी अपनी गँदी विचारधारा से दूषित किया है. ईर्ष्यालू,हिँसा-धर्मी काम-कर्मियों नें हर दुखद मौके का फायदा अपने अज्ञात शत्रु को भांडने के लिए किया है.

  3. सचए सिर्फ सच। लोग व्यवस्था को दोष देते हैं, पर वह भी तो हमारी ही बनाई हुई है। रवि भाई समय मिले तो इसे भी पढ़ियेगा…
    ज़रूरत शिक्षा की: ताकि दामिनी खुलकर चमके
    http://khalishh.blogspot.in/2013/01/blog-post_5.html

  4. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

  5. एक सार्थक अभिव्‍यक्ति… इस ख़तरनाक दौर में….पुरूष के दंभ पर सदियों से पढ़ते आए हैं…दंभ के साथ व्‍य‍ंग्‍य की झलक मिल रही

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