चेंपों पर दो कविताएं
चेंपा
वे जब आएंगे
तो ऐसे ही आएंगे
वे जब छाएंगे
तो ऐसे ही छाएंगे
वे जब-जब आए हैं
ऐसे ही आए हैं
वे जब-जब छाए हैं
ऐसे ही छाए हैं
वे गांवों से निकलते हैं
वे खेत-खलिहानों से निकलते हैं
वे लहलहाती फसलों से निकलते हैं
वे ज़मीं की पैदाईश हैं
वे आसमां की ख़्वाहिश हैं
वे गली-गली छा जाएंगे
०००००
चेंपा – सरसों की कटाई के बाद आसपास फैल जाने वाले छोटे कीट
चेंपों की तहरीर
जब लग रहा था
कि महलों में बसंत शबाब पर है
सरसों के खेतों-खलिहानों से बाहर निकल कर
तभी चौतरफ़ छा गये चेंपे
लाख इंतज़ाम कर लिए
राजा जी की आंखों को
आख़िर लाल कर गये चेंपे
वे तहरीर कर गये हैं
हर शै पर नई इबारतें
जिन्हें वक़्त पढ़ने में लगा है
०००००
चेंपा – सरसों की कटाई के बाद आसपास फैल जाने वाले छोटे कीट
तहरीर – लिखावट, लिखना, लिखाई
रवि कुमार
( “बनास जन” के नये अंक में ( फरवरी-अप्रेल, 2012 ) में कुछ कविताएं आई हैं. उनमें ये दोनों कविताएं भी शामिल हैं. )
वे तहरीर कर गये हैं
हर शै पर नई इबारतें
जिन्हें वक़्त पढ़ने में लगा है
… बहुत सुंदर ..
bahut badiya ravi bhai !
रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
वे जब आएंगे
तो ऐसे ही आएंगे
वे गांवों से निकलते हैं
वे खेत-खलिहानों से निकलते हैं
वे लहलहाती फसलों से निकलते हैं
… बहुत सुंदर .
बेहद अच्छी कविताएं हैं रवि भाई। अरसे बाद ब्लाॅग की दुनिया में इस मिजाज की नई कविताएं पढ़ी हैं।
bahut hi sundar kruti
वे तहरीर कर गये हैं
हर शै पर नई इबारतें
जिन्हें वक़्त पढ़ने में लगा है