फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे
( a poem by ravi kumar, rawatabhata )
एक बच्चा
किवाड़ की दराज़ से बाहर झांका
और गुलेल हाथ में लिए
हवा सा फुर्र हो गया
पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी की तरफ़
बस्ती की जर्जर चौखटों में
ख़ौफ़ तारी हो गया
कोई दहलीज़ नहीं लांघता
पर यह सभी जानते हैं
वह अपनी अंटी में सहेजे हुए
छोटे छोटे कंकरों से
सितारों को गिराया करता है
चट्टानों को बिखराकर लौटती
उसकी मासूम किलकारियां
मुनांदी की मुआफ़िक़
हर ज़ेहन में गूंज उठती हैं
ज़मीं तो ज़मीं
फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे
वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर
वह फिर से
हवा सा फुर्रsss हो रहा है
०००००
रवि कुमार
फ़लक : आसमान, आफ़्ताब : सूर्य, बिलआख़िर : अंततः
( यह कविता, ब्लॉग की शुरूआत में ही पहले भी यहां प्रस्तुत की जा चुकी है )
मुझे भी यक़ीन है-
वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर
इतनी मजबूत कविता के लिए बधाई!
बधाई! बधाई! बधाई! बधाई! बधाई!
बेहतरीन रचना … आम रचनाओं से अलग हटके कुछ अच्छा पढ़ने को मिला आज .. शुक्रिया !
very good poem after a long time.
जर्जर चौखटों को डरना ही होगा ….
सशक्त
Ravi Bhai, Kamal ki rachana hai.चट्टानों को बिखराकर लौटती
उसकी मासूम किलकारियां/वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर. Bachapan ko abhi yahi khulapan chahiye abhivayakti ke liye.
लीग से हट रची रचना , आशावादी , विचारों की सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई की परिधि से बाहर …
बेहतरीन…दमदार कविता ।
नई ते हवा के हाथ में गुलेल हमेशा रही है।
कोई दहलीज़ नहीं लांघता
पर यह सभी जानते हैं
वह अपनी अंटी में सहेजे हुए
छोटे छोटे कंकरों से
सितारों को गिराया करता है
behatar panktiyan! uttam…
शशक्त, सुन्दर अभिव्यक्ति
“कोई दहलीज़ नहीं लांघता
पर यह सभी जानते हैं
वह अपनी अंटी में सहेजे हुए
छोटे छोटे कंकरों से
सितारों को गिराया करता है”
xxx
“ज़मीं तो ज़मीं
फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे
वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर
वह फिर से
हवा सा फुर्रsss हो रहा है”
बहुत ही ख़ूबसूरत नज़्म सम्मानीय रवि जी ! बहुत दिनों बाद ऐसी बेहतर रचना पढ़ने को मिली. हार्दिक शुभकामनाओं सहित नमन !
बस्ती की जर्जर चौखटों में
ख़ौफ़ तारी हो गया
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Bachche ki aas va vishvaas ko lekar ek achchi kavita ke beech me ye panktiyaan khatakatee hain.
अच्छी कविता है रवि भाई .. अब इसी पीढ़ी से उमीदें हैं ।
बहुत खूब..उम्दा
सराहनीय कविता
पढ़ते ही लगा था कि पहले पढ़ चुका हूँ…दुहराव क्यों? शीर्षक अलग और पोस्टर या चित्र नया जुड़ा है…बढ़िया है…
पिंगबैक: बारिश में भीगते गर्मी के बिम्ब
बहुत सुन्दर। आपकी इस कविता को अपने ब्लॉग पर लगा लिया। 🙂
http://hindini.com/fursatiya/archives/3095