भूल भुलैया – कविता – रवि कुमार

सामान्य

भूल भुलैया
( a poem by ravi kumar, rawatbhata )

कलाचित्र - रवि कुमार, रावतभाटा

औपचारिकताओं से लदा समय
एक अंतहीन सी भूल भुलैया में उलझा है
जहां दरअसल
आगे बढना और ज्यादा उलझते जाना है

तार्किकता से दूर
गणित का सिर्फ़ यही बचता है
हमारे मानसों में
संख्याएं हमें कहीं का नहीं छोड़ती
वे हमें गिनने की मशीनों में
तब्दील कर देती हैं

जोड़ बाकी लगाते हुए
हमारे लिए हर चीज़ सिर्फ़ साधन हो जाती है
और लगातार इसकी आवृति से
धीरे-धीरे हमारे साध्यों में
कब बदल जाती है
पता ही नहीं चलता

इस तरह चीज़ों में ही उलझे हुए हम
ख़ुद एक चीज़ में तब्दील हो गये हैं
और बाज़ार के नियमों से
संचालित होने लगे हैं

बच्चे पूछ रहे थे कल कि
यह मानवीयता क्या चीज़ होती है?

०००००
रवि कुमार

22 responses »

  1. बच्चे पूछ रहे थे कल कि
    यह मानवीयता क्या चीज़ होती है?

    और फिर हमें ही कहाँ पता है .. हम क्या जवाब देंगे कि मानवीयता क्या चीज़ होती है
    बहुत खूबसूरत रचना

  2. तार्किकता से दूर
    गणित का सिर्फ़ यही बचता है
    हमारे मानसों में
    संख्याएं हमें कहीं का नहीं छोड़ती
    वे हमें गिनने की मशीनों में
    तब्दील कर देती हैं

    सचमुच, हालात यही है।

  3. हमारा पूरा देश ही आंकड़ों के बल पर चल रहा है, जो ज्यादा मत पाए, सरकार बनाए, भले ही उस लायक हो या नहीं. जो चुनाव में जीतकर आये उसकी सारी गलतियाँ, सारे अपराध माफ…हमारी ज़िंदगी भी आंकड़ों पर चलती है… जो ज्यादा पैसा कमाए वो लायक बेटा कहलाये, भले ही लोगों का खून चूसकर कमाएँ हों…
    सच कहा है आपने
    “इस तरह चीज़ों में ही उलझे हुए हम
    ख़ुद एक चीज़ में तब्दील हो गये हैं
    और बाज़ार के नियमों से
    संचालित होने लगे हैं”

  4. नफा नुक्सान, मोल भाव, और चीज़ें, इन्ही में बंध कर रह गयी है ज़िंदगी. किसी और का क्यूँ नाम लें ,हमसे ही शुरू होती है गिनती.

  5. 1. POSTER KI AANKHE HI KAVI KA SAMPURNA BHAAV PRAKAT KART RAHI HAI.

    2. संख्याएं हमें कहीं का नहीं छोड़ती
    वे हमें गिनने की मशीनों में
    तब्दील कर देती हैं

    Exact picture of Materialistic vision & attiude.

  6. बहुत सुन्दर कविता ,भाई सा….उलझनों के बीजगणित को सुलझाने में उथलपुथल मचाती हुई…और अंत तो जैसे फिर किसी दिशा का सिल है…जिस पर लिखा है ..‘पता नही क्या उधर’ ..नहीं , बल्कि पता नहीं ‘क्या क्या’ है उधर …कुछ उल्लेखनीय सतरें..
    1-औपचारिकताओं से लदा समय
    एक अंतहीन सी भूल भुलैया में उलझा है
    आगे बढना और ज्यादा उलझते जाना है

    2 -संख्याएं हमें कहीं का नहीं छोड़ती
    वे हमें गिनने की मशीनों में
    तब्दील कर देती हैं

    3-बच्चे पूछ रहे थे कल कि
    यह मानवीयता क्या चीज़ होती है?

  7. “Aage badhna aur jyada ulajhate jaana hai” darasal aage bhadane ke mayne hi badalte ja rahe hai so bhulbhulaiya mai ulajhna lajimi hai.
    Jo PROGRESS nahi samajh pa rahe unhe MANVIYATA kaise samjhaye.

    Bahut sunder kataksh hai.

    picture aur kavita adbhut tartamya hai.

    SIMPLY SUPERB.

  8. mai to samajhata tha rawatbhata me sirf bijli paida hoti hai , yahan to achchhe kavi bhi paida hote hai .aapki kavita aaj ki manviyata par ek gahra kataksha hai.gahari sanvedna hai .kathya aur shilp dono ke hi dharatal par yah kavita pathak ko sochane par majboor karati hai .mai bhi ek lekhak aur kavi hoon is nate aapse gujaris karata hun ki kavita ki dhar ko thoda aur paina karo , fir dheko kaise aasman me chhed hota hai .
    ” sankhyanye hame kahin ka nahin chhodati , ve hame ginane ko majboor kar deti hai ——– shakti baan ke samipya sanvedana hai iname .
    dhanyavad dost , in dino mai bhi ek khand kaavya likhane me vyast hu- nam hai -” kyo jate ho madhushala ?” ho saka to jaldi hi aapko pahunchane ka shram karunga .
    punashchay badhai
    = vijay singh meena , assistant director , bureauo of civil aviation ,janapath bhavan newdelhi . mob 09968814674
    thanks a lot

  9. इस तरह चीज़ों में ही उलझे हुए हम
    ख़ुद एक चीज़ में तब्दील हो गये हैं
    और बाज़ार के नियमों से
    संचालित होने लगे हैं

    बच्चे पूछ रहे थे कल कि
    यह मानवीयता क्या चीज़ होती है? — क्या बताया आपने बच्चों को?

    चीज बन गया है आदमी–वाह।

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