एक ऐसे समय में
(a poem by ravi kumar, rawatbhata)
एक ऐसे समय में
जब काला सूरज ड़ूबता नहीं दिख रहा है
और सुर्ख़ सूरज के निकलने की अभी उम्मीद नहीं है
एक ऐसे समय में
जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है
और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं
एक ऐसे समय में
जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है
और भविष्य अनिश्चित और असुरक्षित दिख रहा है
एक ऐसे समय में
जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है
और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है
एक ऐसे समय में
जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है
और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है
एक ऐसे समय में
जब सिद्ध किया जा रहा है
कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है
कि इस रात की कोई सुबह नहीं
और मुर्गों की बांगों की गूंज भी
लगातार माहौल को खदबदा रही हैं
एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है
जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए
०००००
रवि कुमार
बेहतरीन्…
एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है…………… ham taiyari kar rahe hai kuch karne ki…. badhai aapko…
वाह क्या कविता लिखी है आपने
मन पर अपनी छाप छोड़ती है
एक ऐसे समय में
जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है
और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है
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जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए
बेहतरीन! पढकर पहुँच गया हूँ एक ऐसे —- जब कहने को कुछ बचा ही नहीं
सिर्फ् वाह ही है.
यही तो समय है कुछ करने का। जो जानते हैं वे ठाले नहीं बैठे हैं।
बहुत सुंदर, जगाने वाली कविता। एक सही संदेश।
सीधे संवाद करती कविता ..प्रभावी पोस्टर .
wah.. kya baat hai Ravi ji… so true, and so poetic.. awesome..
कुछ नहीं बहुत कुछ किया जाना होगा रवि भाई
और यह सब हम मिलकर करेंगे…युगबोध की कविता
शुभकामना और सलाम स्वीकार करें
एक ऐसे समय में
जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है
और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है
एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है
जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए
एक ऐसे समय में
जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है
और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है
भाई रवि जी एक बेहतरीन अभिव्यक्ति
आपको बहुत बहुत बधाई
और हम कुछ नहीं बहुत कुछ कर रहे है, और सही समय है यही कुछ करने का
यह तो पता है कि कुछ किया जाना चाहिए।
लेकिन वह ‘कुछ’ क्या हो यही तो तो पता नहीं चल पा रहा।
एक ऐसे समय में
जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है
और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं
एक ऐसे समय में
जब सिद्ध किया जा रहा है
कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है
कि इस रात की कोई सुबह नहीं
और मुर्गों की बांगों की गूंज भी
लगातार माहौल को खदबदा रही हैं
एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है
जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए
आपकी कविता सृजन के माध्यम से केवल जीवन मूल्यों का मुल्यांकन ही नहीं करती वरन् जीवनदर्शन और जीवनसंघर्ष को भी दिशाएं देती है। एक सशक्त रचना। बधाई।
बहुत अच्छा रवि जी… कमाल की कविता है.. प्रासंगिक और बेहतरीन… आप बहुत अच्छा लिखते हैं…
सार्थक एवं प्रेरक विचार। आभार।
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ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
एक सार्थक चिंतन।
बधाई स्वीकारें।
kyu aap aisa sochte ki कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल यही समय होता है जब कुछ किया जा सकता है
aapke aisa sochne ke piche kya sooch hai kya tark hai,jaankari ke liye puch rahe hai.
सुन्दर भाव! अतीत का महिमामंडन तभी हो सका है जब वह सचमुच गर्वीला रहा हो. बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के उस प्राचीन ज्योतिर्मय पथ को फिर से ढूंढा जा सकता है और एक रोशन सूरज फिर चमकेगा, न लाल न काला न हरा, न नीला बल्कि फुल स्पेक्ट्रम सूरज जिसमें सबके लिए जगह होगी.
एक ऐसे समय में
जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है
और भविष्य अनिश्चित और असुरक्षित दिख रहा है
एक ऐसे समय में
जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है
और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है
एक ऐसे समय में
जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है
और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है
एक ऐसे समय में
बहुत अच्छा रवि जी ..प्रभावी पोस्टर
बधाई स्वीकारें
आचार्य जी क्या कहू कि नकारात्मक ब्यक्तित्व को सकारात्मक करने कि ये आपकि ये रचना कितनि प्रभाव्शाली हैओ..अदभुत ..
shi kha bhaiya.
यह तो पढ़ी हुई है।
एक ऐसे समय में
जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है
और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं
… … बेहतरीन और शब्दों का जादू… …