मेरे पास कई ख़्वाब हैं
(a poem by ravi kumar, rawatbhata)
मेरे पास कई ख़्वाब हैं
ख़्वाबों के पास कई ताबीरें
पर लानतें भेजने वाली बात यह है
मुझे मेरे ख़्वाबों की ताबीर नहीं मालूम
मैंने उसे अपने ख़्वाब बताए
और ताबीर जाननी चाही
वह फ़िक्रज़दा हो गई
और मकडियों के जालों से भरी
पुरानी अटारी को देर तक खखोरती रही
फिर उसने हर मर्तबान उलट कर देखा
बिल आखिर
जब कुछ बूझ पाना बेमानी हो गया
ज़िद करके उसने मेरी बांह पर
काले डोरे से एक ताबीज बांधा
जिसे उसने किसी फकीर से
तमाम बलाओं को पल में उडा़ देने वाली
एक फूंक के साथ
चार आने के बदले में लिया था
और मेरे बिस्तर के नीचे
चुपचाप एक खंजर रख दिया
जैसा कि अक्सर मेरी दादी
फिर मेरी माँ करती आई थी
जब मैं बचपन में
सोते में डर जाया करता था
और सुब्हा बिस्तर गीला मिलता था
मैं उसकी हर हरकत को
अपने ख़्वाबों की ताबीर तस्लीम कर रहा था
अब वह सोते वक्त
मेरी पेशानी का बोसा लिया करती है
और मेरे बालों में उंगलियां फिराते
सीने पर सिर टिका कर
जाने कब सो जाया करती है
उसके चिंतित न्यौछावर स्नेह के चलते
मैं अपनी सपाट छातियों में
लबालब दूध महसूस करता हूं
उसे नहीं मालूम शायद
ख़्वाब रात के अंधेरे और
नींद के मुंतज़िर नहीं होते
उसे यह भी नहीं मालूम
कि सुर्ख़ आफ़ताब को
नीले आसमां में ताबिन्दा होता देखने के ख़्वाब
स्याह आफ़ताब के सामने ही
गदराया करते हैं
पर वह रोज़ाना मेरे लिए
ख़्वाबों की ताबीर पा जाने की
दुआ मांगा करती है
मेरे पास ऐसे कई ख़्वाब हैं
ख़्वाबों के पास ऐसी कई ताबीरें
और शायद मैं
फौरी नतीज़ों से खौफ़ज़दा हूं
०००००
रवि कुमार
ख़्वाब – सपने, ताबीर – ख़्वाबों का मतलब, नतीज़ा, बिल आखिर – अंततः
तस्लीम करना – मानना, मुंतज़िर – इंतज़ार में, ताबिन्दा – प्रतिष्ठित
बहुत बहुत गहरी नज्म़! एक गैर ख़ास आदमी की जिन्दगी, उस के दिल और दिमाग की सही तस्वीर देखी इस में।
…सुर्ख़ आफ़ताब को
नीले आसमां में ताबिन्दा होता देखने के ख़्वाब
स्याह आफ़ताब के सामने ही
गदराया करते हैं
बेशक !
मेरे पास ऐसे कई ख़्वाब हैं
ख़्वाबों के पास ऐसी कई ताबीरें
और शायद मैं
फौरी नतीज़ों से खौफ़ज़दा हूं
-बहुत गहन रचना..लगातार दो तीन बार पढ़ गये.
@ “उसके चिंतित न्यौछावर स्नेह के चलते
मैं अपनी सपाट छातियों में
लबालब दूध महसूस करता हूं” – ————– क्या बात है!
@”ज़िद करके उसने मेरी बांह पर
काले डोरे से एक ताबीज बांधा
जिसे उसने किसी फकीर से
तमाम बलाओं को पल में उडा़ देने वाली
एक फूंक के साथ
चार आने के बदले में लिया था”
_________________ कभी कभी इन फूँकों से ख्वाब भी उड़ जाया करते हैं।
वाह, वाह वाह.
झूम गए हम.
thank you so much ….nice post dear …i think i find one nice blog on wordpress ….keep it up …from ashvin
हर सपना एक कहानी की जरूरत है
छू गई… कई दिनों के बाद ऐसी कविता पढ़ने के लिए मिली। लेकिन अपने लिखे को बड़ा कीजिए। मेरा मतलब फॉन्ट साइज से है। कृपया इसे जरूर कर दीजिए।
बेहतरीन रचना
अभी ब्लॉग में नया हूँ और कविता में छोटा. एक
अन्य और अनूठा ब्लॉग प्रथमबार पढ़ रहा हूँ. आपको हमारी कविता अच्छी लगी. मैं अपनें आपको धन्य समझता हूँ. सोचता था
कविता मैं नहीं लिख सकता. कविता ‘मेरे पास कई ख़्वाब हैं’…शायद मेरे
पास भी. शब्दों और शब्द-चित्र के माध्यम से कविता दुगनी असरदार बन पड़ी है.
राकेश ‘सोऽहं’
रवि भाई
सच में बेहतरीन कविता
बधाई
मैंने उसे अपने ख़्वाब बताए
और ताबीर जाननी चाही
वह फ़िक्रज़दा हो गई
और मकडियों के जालों से भरी
पुरानी अटारी को देर तक खखोरती रही
फिर उसने हर मर्तबान उलट कर देखा……………….!
अति सुन्दर कविता
” वो शक्स जिन्दगी को मेरी आवाज़ दे गया !
मन के पन्छी को ख्वाबों की परवाज़ दे गया !!”
– “नाशाद”
“उसे नहीं मालूम शायद
ख़्वाब रात के अंधेरे और
नींद के मुंतज़िर नहीं होते
उसे यह भी नहीं मालूम
कि सुर्ख़ आफ़ताब को
नीले आसमां में ताबिन्दा होता देखने के ख़्वाब
स्याह आफ़ताब के सामने ही
गदराया करते हैं”
बेशक….
वाह भई रवि जी बहुत सुंदर