मैं ख़ुदाओं के बीच सो रहा
(a poem by ravi kumar, rawatbhata)
उसने मुझसे
ख़ुदा के नूर के बारे में पूछा
मैंनें उसे आईना दिखा दिया
उसने ख़ुदा की पनाहगाह का पता मांगा
मैं फुटपाथ पर उकडू पडे
ख़ुदाओं के बीच जाकर सो रहा
उसने ख़ुदा की नसीहतों की जानकारी चाही
मैंनें उसे गले से लगा लिया
और उसकी आंखों का समन्दर पी गया
उसने मुझसे शैतान के बारे में पूछा
और जहन्नुम की अज़ीयतों को जानना चाहा
इससे पहले कि मेरी ज़ुबां राज़ खोलती
वह वहशतज़दा हो गया
मैंनें उसकी पथराई आंखों में
शिखा से बंधा भगवा
गुंबद में निकली दाढ़ी
और संगीनों का ख़ौफ़नाक़ साया देखा
ख़ामोशी के तेवर
उसकी वाक़फ़ियत का इजहार कर रहे थे
उसने मुझे
एक सरकंडे़ की कलम हदिया की
और जन्नत का मज़ा लूटना चाहा
मैंनें उसे एक पूरी रोटी पेश कर दी
वह उसे छाती से चिपकाकर
चैन की नींद सो गया
उसके कीचड़ और बिबाईयों से सजे पैर
माबद पर
इनायत फरमा रहे थे
०००००
रवि कुमार
अज़ीयतों – यातनाओं, वाक़फ़ियत – जानकारी
हदिया की – उपहार में दी, माबद – इबादत करने का स्थान.
जवाब नहीं इस कविता का। रेखा चित्र ने इस के प्रभाव को द्विगुणित कर दिया हैय़
I like it.
बहुत सुंदर भाव … सुंदर प्रस्तुति … अच्छी लगी रचना।
ye to shandar rachna hai aapki guru
bahut hi behtreen rachna hai …taareef ke liye shabd kam hain ….
change the thinking and achieve the lord.
Ab aa raha he kavita me maza.ese hi likhate raho.
Badia kavita he ese hi lage raho.
बद्सुरत हकीकत को खुबसुरत तरीके से शब्द दिये गये है। धन्यवाद।
achi rachna hain
superb,lajawaab par pahle se padhi thi
bhai aap khudaon ke beech men so gaye the is liye men khudaon ke bagal men so gaya aur aapse khuda ke baaren main poochhne ki jaroorat hi nahi padi kyon ki men bhi to khuda ke bagal men hi tha na
kaho kaisi rahi
anyatha na lena
kavita waakai sochne par majboor karti hai
dhanybaad aapko